*!! एकता !!*~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
किसी जंगल में एक शेर रहता था जिससे सभी पशु-पक्षी बहुत डरते थे । शेर रोज किसी एक जानवर को मार कर अपना पेट भरता था । उसी जंगल में खरगोश, कछुआ, बंदर और हिरण, ये चारों पक्के और सच्चे दोस्त थे, जो हमेशा हर जानवर की मदद करने को तैयार रहते थे ।
एक दिन एक भेड़िया उस जंगल में पहुंचा । रास्ते में उसे भालू मिला । भालू ने उसको जंगल के सारे कायदे कानून बताए कि यहां का राजा शेर रोज एक जानवर को मारकर खाता है, उससे बच कर रहना । चालाक भेड़िये ने सोचा, शेर से मित्रता करके, उसका हितैषी बनकर, उसका दिल जीतना चाहिए, इससे मेरी जान तो बच जाएगी ।
भेड़िया शेर की गुफा में गया और सोए हुए शेर के पास बैठ गया । शेर नींद से जब जागा तो भेड़िए को खाने को उद्यत हुआ । भेड़िए ने कहा, महाराज, पशुलोक से पशु देवता ने आपकी सेवा के लिए मुझे भेजा है । अब आपको शिकार पर जाने की जरूरत नहीं । आज से आपको मैं शिकार लाकर दूंगा । शेर ने भेड़िए की बात मान ली ।
भेड़िए ने जंगल में यह ढिंढोरा पिटवाया कि मैं पशुलोक से राजा शेर का सेवक बन कर आया हूं । प्रतिदिन जंगल के राजा की भूख मिटाने के लिए एक प्राणी मेरे साथ चलेगा । जंगल के सभी जानवर डर गए और भेड़िए की बात मानने को तैयार हो गए ।
शेर के पास जाने के क्रम में एक दिन खरगोश की बारी आई और भेड़िया उसे ले जाने लगा । तभी वहां हिरण, बंदर और कछुआ भी आ पहुंचे और उसके साथ जाने की जिद करने लगे । शेर के सामने पहुंचकर चारों ने बारी-बारी अपनी बात शेर से कहीं । सबसे पहले खरगोश बोला, महाराज आज मैं आपका भोजन हूं । कछुआ बोला, नहीं महाराज आप अकेले खरगोश को नहीं खाइए, मुझे भी खाइए । तभी बंदर कहता है, महाराज इन तीनों को छोड़ दीजिए, मैं बड़ा हूं, मुझे अपना भोजन बना लीजिए । इतने में हिरण बोल पड़ा, महाराज, इन तीनों को छोड़ दीजिए, मैं अकेला ही तीनों के बराबर हूं, आप मुझे अपना शिकार बना लीजिए ।
भेड़िया यह सब सुन रहा था । उसने कहा, महाराज, देर ना करें इन चारों की बातों में ना आए, एक झटके में इनको खत्म करके अपनी भूख मिटायें । तभी शेर ने चारों को अपने पास बुलाया और कहा, *मैं तुम्हारी सच्ची एकता, मित्रता और त्याग देख कर बहुत खुश हुआ ।* यह कह कर शेर ने भेड़िए को अपना शिकार बना दिया ।
*शिक्षा:-*
किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए आपसी एकता होना बहुत जरूरी है । एकता के लिए चाहिए आपसी स्नेह और विश्वास । स्नेह के आधार से ही सहयोगी बन पाते हैं । सहयोगी बनने के लिए अपने को मिटाना पड़ता है अर्थात् अपने पुराने संस्कारों को मिटाना होता है ।
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
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