*!! चतुर न्यायधीश !!*
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किसी गांव में एक प्रधान रहता था | प्रधान अपने न्याय के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था | एक बार पास के गांव में दो आदमी लच्छू और यशपाल प्रधान के पास एक मुकदमा लेकर आये |
यशपाल एक धनी आदमी था जबकि लच्छू एक गरीब किसान | लच्छू का कहना था कि छ: महीने पहले यशपाल ने उससे पांच हज़ार रुपये उधार लिये थे | लेकिन अब वापस करने से मना कर रहा है |
उधर यशपाल का कहना था कि वह लच्छू से कई गुना अमीर है | वह भला लच्छू से उधार क्यों मांगने लगा |
मुकदमा गंभीर था | दोनों ही अपनी अपनी बात पर अड़े हुये थे | प्रधान ने कुछ देर सोच विचार किया तथा अगले दिन आने को कहा |
अगले दिन लच्छू और यशपाल सही समय पर प्रधान के सामने पेश हुये तो प्रधान ने एक दीवार की ओर इशारा करते हुये उनसे कहा – “ तुम दोनों उस दीवार के पीछे चले जाओ | वहां पर दो अलग-अलग बाल्टीया रखी हैं | तुम दोनों बाल्टी मैं से एक-एक लोटा पानी निकालकर अपने हाथ-पैर धो लो | लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि केवल एक लोटा पानी ही इस्तेमाल करना इससे अधिक नहीं | पवित्र होने के बाद ही न्याय देवता की पूजा होगी |”
वे दोनों दीवार के पीछे गये | जहां लच्छू ने तो एक लोटा पानी से अपने हाथ-पैर आसानी से धो लिये | लेकिन यशपाल एक लोटा पानी से अपने पैर भी नहीं धो पाया | उसने अगल-बगल झांककर देखा और यह सुनिश्चित कर लिया कि उसे कोई भी नहीं देख रहा है तो उसने तुरंत एक लोटा पानी और निकाला और पैर पर डाल लिया | उसने देखा कि तब भी उसके पैर पूरी तरह नहीं धूल पाये हैं |
यशपाल ने सोचा कि – “ मैं एक लोटा पानी और इस्तेमाल कर लूं, इस बात पर प्रधान मुझे फांसी ही थोड़ी लटका देगा |” बस उसने दो लोटे पानी और डाल लिये |
दोनों प्रधान के पास पहुंचे | प्रधान ने उनसे पूछा कि – “ क्या दोनों ने एक-एक लौटा पानी ही इस्तेमाल किया है |” तो दोनों ने “हां” मैं उत्तर दिया |
प्रधान बड़ा ही चतुर था | उसने बाल्टीयो में जाकर देखा और जान लिया कि यशपाल ने एक लोटा पानी के बजाय पूरी बाल्टी का पानी इस्तेमाल कर डाला है |
वहां बहुत से लोग बड़ी देर से न्याय की प्रतीक्षा में खड़े हुए थे कि कब प्रधान अपना निर्णय सुनाता है | कुछ सोच-विचार और न्याय देवता की प्रार्थना करके प्रधान ने अपना निर्णय सुनाया – “ लच्छू सही कहता है, कि यशपाल ने उससे रुपये लिये हैं और वापस करने से मना कर रहा है | मैं यह फैसला देता हूं कि तुरंत ही लच्छू को पांच हज़ार रुपये वापस करें | झूठ बोलने के लिए उससे माफी मांगे और हर्जाने के रूप में एक हज़ार रुपये लच्छू को और दे |” इस बात को सुनकर लोग असमंजस में पड़ गये कि ऐसा कैसे मालूम हो गया | उन्होंने प्रधान से इस बारे में पूछा प्रधान ने मुस्कुराते हुये कहा – “ सीधी सी बात है ! मैंने दोनों की हाथ-पैर की परीक्षा इसलिए ली थी | जिससे मुझे इन दोनों के स्वभाव के विषय में जानकारी हो जाये | लच्छू ने एक लोटा पानी में ही अपने हाथ-पैर धो डालें | अतः वह कम खर्चे में ही गुजारा करने वाला आदमी है |
जबकि यशपाल ने पूरी बाल्टी पानी खत्म कर दिया | जिससे यह पता चलता है कि वह स्वभाव से मतलबी, स्वार्थी तथा भ्रष्ट आदमी है | साथ ही उसने झूठ भी बोला कि उसने एक ही लौटा पानी इस्तेमाल किया है | अत: यह स्पष्ट हो जाता है कि यशपाल झूठ भी बोलता है | बस इसी से मैंने जान लिया कि यशपाल ने अवश्य ही लच्छू से पांच हज़ार रुपये लिये हैं और उनको वापस नहीं करना पड़े इसलिए वह मना कर रहा है |” सभी उपस्थित लोग उस न्याय से प्रसन्न हुये |
अगले दिन प्रधान के पास एक दूसरा मुकदमा पेश हुआ | दौलतराम का एक मकान बन रहा था | उसमें एक बढ़ई काम कर रहा था |
दौलतराम का कहना था कि – “ बढ़ई ने अवसर देखकर घर में रखे संदूक से रुपयों से भरी थैली चुराई है | जिस समय घर में यह घटना हुयी | उस समय बढ़ई और मेरे भाई का लड़का ही घर में थे | लड़का कहता है कि – ‘ रुपये उसने नहीं लिये |’ बढ़ई कहता है कि – ‘ उसने भी नहीं लिये |’ आप न्याय करें तथा मुझे मेरे रुपये दिलवाये |”
प्रधान ने उन्हें भी अगले दिन आने को कहा | दूसरे दिन सभी लोग वहां एकत्र हो गये | बढ़ई तथा दौलतराम के भतीजे को प्रधान ने अपने पास बुलाया और कहा कि – “ दीवार के पीछे एक छोटा सा डंडा पड़ा है | तुम्हें एक-एक करके वहां जाना है और उस डंडे को अपने सीधे हाथ से पकड़ना है, और फिर वही रखना है | यह मंत्रों से सिद्ध डंडा है जिसने भी पैसे चुराये हैं | डंडा उसके हाथ से चिपक जायेगा | वह उससे छुड़ाने पर भी नहीं छूटेगा |”
इस प्रकार समझा कर उसने पहले दौलतराम के भतीजे को डंडा छूने को दीवार के पीछे भेजा | उसके लौटकर आने पर उसने बढ़ई को भेजा | प्रधान ने अलग ले जाकर दौलतराम के भतीजे की हथेली को सुंघा और फिर दीवार के पीछे से लौटकर आने वाले बढ़ई की हथेली को अलग
ेजाकर सुंघा |
न्याय का यह तमाशा देखने आये लोगों से उसने कहा कि – “ अब मैं न्याय देवता के आदेश से यह निर्णय देता हूं कि रुपयों की थैली बढ़ई ने ही ली है | दौलत राम के भतीजे ने नहीं |”
यह निर्णय सुनकर लोगों ने देखा की बढ़ई की नजरें नीचे हो गयी | प्रधान ने बढ़ई से कहा – “ बोलो ! चोरी कबूलते हो या नहीं | वैसे मेरे पास इसका पता लगाने के और भी तरीके हैं |”
बढ़ई ने चोरी करना स्वीकार कर लिया | वह रुपयों की थैली अपने घर से वापस देने को दौलतराम तथा उसके भतीजे के साथ वहां से चला गया |
लोगों ने प्रधान से पूछा कि – “ आपने यह कैसे जाना की चोरी बढ़ई ने की है |” तब प्रधान ने हंसते हुये कहा – “ मैंने डंडे पर हींग का खूब गाढ़ा लेप किया हुआ था | जो डंडा पकड़े तो उसकी हथेली से हींग की गंद आने लगे | मैंने यह कहा था कि जिस ने चोरी की होगी उसके हाथ में डंडा चिपक जायेगा | इस पर चोरी न करने वाले दौलतराम के भतीजे ने निर्भीक होकर हथेली से उस डंडे को पकड़ा | क्योंकी सुंघने से उसकी हथेली पर हींग की गंद आ रही थी | जबकि चोरी करने वाले बढ़ई ने डंडा चिपक न जाये इस डर से डंडे को छुआ तक नहीं | क्योंकि वहां उसे देखने वाला तो कोई था, नहीं ! इसलिए वह डंडा छुये बिना वहां से लौटकर आया | उसकी हथेली तथा उंगलियों में हींग की गंद नहीं थी | इस प्रकार मैंने जान लिया कि डंडे को न छूने वाले बढ़ई के मन में चोर है और वही थैली चुराने वाला भी है |”
प्रधान की बुद्धिमता तथा न्याय की सभी ने प्रशंसा की तथा वहां से चल दिये |
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
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